अयूटेयूर उपवर्ग
पर्यायवाची
सामान्य नाम
अंग्रेजी
जौहनसन ग्रास,
अलैप्पो मिल्लेट ग्रास
बंगाली
हिन्दी
बरू
उर्दू
बरू
व्याख्या
सोरगम हलेपेनस एक दृढ़, खड़ा हुआ, बहुवार्षिक घास है जो रेगते हुए प्रकन्दो से फैलता है। तने (कलमस) खड़े हुए, जोडयुक्त एवं आधार से जड़ निकालते हुए होते है। शिरायुक्त पत्तियों की आच्छद स्पष्ट मध्यशिरा, बड़ा एवं थोड़ा बैगनी पुष्पगुच्छ इस वर्ग के पहिचानने वाले विशिष्ट गुण है।
जीव
विद्या
सो. हलेपेनस एवं बहुत ज्यादा बिज पैदा करने वाला है। जो इसको फैलान वाला मुख्य कारण है। हाँलाकि इसकी दूसरे पौधो से प्रतिर्स्पधा की अच्छी क्षमता एवं इसकी अवेज्ञा पूर्वक अधिकतम गहन नियत्रंण तरीके में भी दृढता से बना रहना अवश्य रूप से इसकी लम्बी, बहुत प्रबल एवं बहुत ही व्यवस्था योग्य प्रकन्द (राईजोमस) जड़ प(ति जो जमीन की निचली सतह में पनपती के कारण है। सामान्यता पद्वति प्रथम क्रम, द्वितीय क्रम एव तीतृय क्रम की प्रकन्दो से बनी है। मौलिक ढ़ाचा बढ़वार के मौसम के शुरू में जीवित रहता है। एवं नई वृध्दि के लिए मुख्य प्रकन्द के विस्तार से दूसरे क्रम का ढ़ाचा बनता है जो उपरी सतह रहते हुए नऐ पौधों को पैदा करता है। तृतीय श्रेणी के प्रकन्द जो पौधे के आधार से उगता है, फूल आने समय बढे होते है। सामान्य रूप से जमीन में गहरे जाते है। एवं सामान्य रूप से बढना जारी रहता है जब तक ठण्ड़ा एवं शुल्क मौसम का आगमन होता है। ये तृतीय श्रेणी के प्रकन्दा अगले मौसम में नये पौधे बनाते है।
परिस्तिकी
एवं वितरण
यह आभ्यन्तरकि क्षेत्र की पैदायश है अब यह संसार के सभी ड्डषि क्षेत्रों में भयकर खरपतवार के रूप में स्थापित हो गई है। इसका फैलाव खरपतवार के रूप में अक्षांश/चौड़ाई ५५ उत्तर से अक्षांश ४५ दक्षिण तक विस्तृत है। यह सबअयनवृत के गर्म, आद्र, गर्मी वर्षा वाले क्षेत्रो में यथाकाल व्यवस्तीत हुई लगती है। एवं उन क्षेत्रों में इतनी अच्छी तरह यथाकाल व्यवस्तीत नही है जो कि दृढता से अयनवृत है।
कष्टक
प्रभाव
सो. हलेपेनस की खरपतवारता इसके बहुत बड़े भाग में इसकी प्रबल वृध्दि एवं दीर्घायु के प्रति अनुकूलनता है बहुत से सटरेनस हालाकि बहुत ही जल्दी सामायन्यता ३ साल में तृण सहित भूमि वाले हो जाते है। एवं पौधो को तोड़ा जाना चाहिए जब तक पौधो का झुण्ड़ दोबारा स्थापित होता है। यह विन एवं प्रकन्द की छोटी खण्ड़ो में चीर फाड़ जब पक्ति वाली प्रभावित फसलों के खेतों में प्रयोग होता है तो इस खरपतवार की बहुत अधिक संख्या का अच्छी तरह संस्थापन वाले परिणाम हो सकते है। यह कपास, गन्ना एवं अयनवृत से सम शितोष्ण मौसमों से दूसरी फसलो का प्रमुख खरपतवार है। उपजाऊ भूमियों में खरपतवार दूसरी ड्डषि फसलों में फैल जाएगा एवं जिसको खत्म करना बहुत ही कठिन होगा। इसके विपरित पाकिस्तान में जब इसका उचित रीती से प्रबन्ध एवं चरागाह या सूखा चारा के रूप नियंत्रण किया जाए तो यह स्वादिष्ट चारा के रूप में माना गया है। यद्यपि यह खरपतवार बहुत अच्छा चारा पैदा करता है, यह कुछ परिस्थितियों के अर्न्तगत अपनी पत्तियों एवं तनों में परूसीक अमल (हाईड्रासाइनिक अमल ) इकठा कर लेता है। यह तब पशुओ के लिए प्राणधातक हो सकता है जो चरागाहों में चराई करते है जहाँ यह उग रहा होता है।
खरपतवार प्रबन्ध
कर्षण विधि
गर्मियों में बारम्बार गहरी जुताई करके इसका प्रकोप कम किया जा सकता है। इसके प्रकन्दों
को मई जून में सूर्य की धूप में सुखाने से इसके प्रकोप में कम़ी ला सकती है।
जैविक
रासायनिक
धान की
बुवाई से पहले १.० प्रतिशत ग्लाईफोसेट छिड़क कर इसका नियत्रंण किया जा सकता है । पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में, इसका एकीकृत खरपतवार प्रबन्ध से भी इसका नियत्रंण बहुत कठिन है। उगने से पूर्व प्रयोग होने वाले खरपतवारनाशक जैसे १.० से १.५ कि॰ग्रा/है॰ पेन्डीमेथालीन (स्टोम्प ३३० ई.सी.) या २.० ली./है॰ ड्यूअल गोल्ड़ ९६० ई॰ सी॰ का प्रयोग बीज के उगने के विरुद्ध किया जा सकता है । उगने के बाद २.५ ली./है॰ ग्रामोजोन २० ई॰ सी॰ या बास्टा २० एस. एल. का प्रयोग फसल रहित क्षेत्रों या पानी के स्रोतों के साथ-साथ किया जा सकता है।
वनस्पति
विज्ञान
स्वभाव
गुच्छेदार बहुषर्पीय घास लम्बे रेगने वाले प्रकन्दों के द्वारा फलने वाला
जड़ें
गहरे प्रकन्दों से उत्पन्न हुई अपस्थानिक जड़ें।
तना
भूमिगत प्रकन्दो में अतिरिक्त सीधे मजबूत तने ५ से ३ मीटर लम्बे बढ़े हुए रेगने वाले शलकयुत्म प्रकन्दो से उत्पन्न।
पत्तियाँ
आच्छद उभारदार, चिकना या प्रायः फलक के साथ जोड़ के पास रोमीया प्रायः आधार के पास चिपचिपा पदार्थ निकलता है। जीमीका छोटी कागजीय मुख्य रोमीय फलक सिरे पर चिकना या खुरदरा बहुत शिराए स्पष्ट मध्यशिरा के साथ, २० से ६० सें॰ मी॰ लम्बे ०५ सें॰ मी॰ से ५ सें॰ मी॰ चौडे।
पुष्पक्रम
पुष्पगुच्छ लम्बे शकुंकार बंगनी जैसे, रोमीय १५ से १५ सें॰ मी॰ लम्बे प्रायः कभी-कभी फूल आने के बाद मिल जाते है। प्राथमिक शाखाऐ २५ सेमी तक लम्बी और पुनः शाखित असीमाक्ष १ से २.५ सें॰ मी॰, अनूशूकी प्रायः जोडो में यद्यपि पुष्पक्रम के शिखर पर तीन भी हो सकती है, जब अनूभूकीकाओ जोडे में हैं। प्रायः नीचे वाली अवृन्त और ऊपर वाली सवृंन्त संकरी लम्बी और पुकेसंर मुक ओर जब अनुशूकीकाए तीन है एक (प्राय बीच वाली) एक अवृन्त ओर पूर्व अन्य दो सवृन्त और पुकंशयुक्त अनूभूकीकओं का वृन्त ४ से ५ मि॰ मी॰लम्बा हरा, सवृन्तीय भूकीया ५.५ मि॰ मी॰ लम्बी गांढ, दाढीनुमा छितरा हुआ नीचे वाला वृष रेशमी रोमयुक्त ऊपरी ब्राह्यय दल बिना वृषका कभी-कभी ड्डषित वाले रूप में।
फल
दाने लगभग ३
मि॰
मी॰ लम्बे अण्डाकार लाल भूरे, चमकदार, सतह पर स्पष्ट चिन्हत।
टिप्पणी
संदर्भ
-
होम एल
जी फलम्नेट डी॰
एल
पचो जे.वी हरबर
जी पी १९१९ दी
वर्ल्ड वस्ट वीड स
डीसरी बायोलोजी इस्ट
वैस्ट केन्द्र बाई
दी यूनिर्वसीटी प्रैस
हवाई।
-
नाय्यर एम.एम.
आशीक एम.एण्ड अत्यद
जो २००१ वनफूल आन
पंजाब वीडस
(पार्ट-१)
डायरेक्टोरेट आफ एग्रोनोमी अयूब
एग्रीकल्चर रिर्सच इन्सटीटयूअ
फसलाबाद पाकिस्तान
-
हाफलिगर इ.,
स्कुल्ज एच १९८० ग्रास
वीडस २ डाकयूमेन्टा सीबा
बेनी.
स्वीटरलण्ड