पर्यायवाची
सामान्य नाम
अंग्रेजी
वैच,
वाइल्ड वैच,
बरनट,
कैलट्रॉप
बगांली
हिन्दी
भाकरी,
छोटा गोखरु,
ग्राऊंड बरनट,
काँटी,
नेरुन्जिल
पजांबी
ऊर्दू
भाखरा
व्याख्या
ट्रिबूलस टेरेसट्रिस अपने लम्बे पडे हुए और पृथ्वी पर पडे हुए स्वभाव से शाकीय वार्षिक चटाई की तरह होता है और इसकी लम्बी मूसला जड़ें होती है। तना हरे से ललिमा या भूरे जैसे और रोमिलयुक्त, केन्द्रीय अक्ष से चमकदार, पत्तियाँ सयुंक्त और सम्मुख क्रम में व्यवस्थित, प्रत्येक पत्ती पर ५ से ८ जोडो में असमान पत्रक, पत्तिया ऊपरी सतह से हरी और विरलता
में रोमिलयुक्त जबकि निचली सतह पर सघन रोमिल युक्त। पुष्पों में ५ पीले दल होते है और फल पकने पर ५ काठठीय व सूतनुमा भागों में बट जाते है। इसका यही लक्षण इस जाति के ट्रिबूलस नाम की उत्पत्ति को बताता है। इसे लेटिन भाषा के ट्रिबो अर्थात “को फाडना'' से लिया गया है। भारत में ट्रिबूलस टेरेसट्रिस को पारम्परिक दवाओ जैसे पौष्टिक, मूत्रवर्धक और वाजीकर आदि के बनाने में प्रयोग किया जाता है।
जीव
विज्ञान
ट्रिबूलस टेरेसट्रिस, मुख्य शीतोष्ण क्षेत्रों का एक ग्रीष्मकालीन
वार्षिक पौधा है और यह उपयुक्त उष्ण कटिबन्धीय दशाओं में बहुवर्षीय भी हो जाता है। पौधे की भांति इसका गहरा व कभी-कभी काठठीय मूसला जड और स्पष्ट बिना जडो का जाल होता है। यह अधिकतर पौधो के लिये बहुत कठोर स्थिति में भी उगता है और नमी ले सकता है। यह केवल बीज द्वारा उत्पन्न होता है। बीज पूरे साल अनियमित रूप से अकुंरित होते रहते है और पौधे को कही भी अच्छा विकसित होने के लिए विशेष अकुरंण की आवश्यकता प्रतीत नही होती। भारत में खरपतवार अंकुरण के बाद बडी तेजी से उगते है। और एक सप्ताह के अन्दर ही काफी क्षेत्र को ढक लेते है। जब अधिकतर तनो की वृ(ि हो जाती है तो अंकुरण के ३ से ५ सप्ताह बाद फूल आने प्रारम्भ हो जाते है। फल बनने प्रारम्भ होने से २ सप्ताह पूर्व तक प्रायः फूल पौधे पर रहते है। फल लगभग २ सप्ताह में परिपक्व हो जाते है। कुछ समय बाद ही ये आपस में अलग-अलग भागों में बंट जाते है। एक पौधा करीब २.५ वर्ग मी.स्थान ढक सकता है व १००० फल पैदा करता है।
पारिस्थितिकी और वितरण
ट्रिबूलस टेरेसट्रिस ३५ दक्षिणी अक्षांश से ४७ उत्तरी अक्षांश तक पूरे ससांर में फैला हुआ है। यह प्रायः मेडिटेरियन क्षेत्र का मूल पौधा है। अब यह उष्णकटिबधीय से शीतोष्ण क्षेत्रों जैसे दक्षिणी यूरोप, पूर्वी अफ्र्रीका, दक्षिणी एशिया और आस्ट्रेलिया में बहुत व्यापक फैला हुआ है। ट्रिबूलस टेरेसट्रिस के बीजो का प्रकींर्णन पूरे विश्व में यूरोपियन भेड़ की ऊन में हो चुका है। प्रायः खरपतवार पहले कृषि बिरादरी, रेल व सडक की जगहों और कस्बों के तटीय क्षेत्रो में देखा जाता है। यह खरपतवार सूखे, ढ़ीले, बुलई मिट्टीयो और खेतों के अच्छे सिरों पर बहुत अच्छा उगता है। कभी-कभी यह भारी मृदाओ विशेषकर यदि वो उर्वर और नमीयुक्त है में भी उग जाता है। यह कठोर मृदाओ में भी उग सकता है।
कष्टक
प्रभाव
ट्रिबूलस टेरेसट्रिस से नुकसान और समस्यायें हैं; १)
पशुओं को माँस और त्वचा में चुभन, संक्रमण और अन्य यांत्रिक घाव हो जाना, २) फसल बीज गुणवत्ता घटना, ३) कटाई व्यय बढ़ जाना, ४) जमीन की तैयारी व खरपतवार प्रबन्धन के व्यय में बढ़ोतरी और ५) जब इसे पशुओं को चारे के रूप में प्रयोग किया जाए तो यह
पूरे पौधे में जहरीले पदार्थ होने के कारण हानिकारक होता है। यह अनाजों, चारागाहों, मूंगफली, गन्ना, कॉफी, प्याज, रेशीय फसलों, फलों और आलू की फसलों का एक सामान्य खरपतवार है। ट्रिबूलस टेरेसट्रिस
फसलो की समस्या है क्योकि बहुत सूखी दशाओ में जमीन से बहुत गहरी नमी को खीचनें की क्षमता रखने वाला अलग प्रतिस्पर्धात्मक पौधा है। भारत में यह बाजरे (पैनिसेटम टाइफाइडस) का प्रभावशाली खरपतवार, पैदावार में १५ से २० प्रतिशत कमी का कारण था। भारत में सूखे क्षेत्रो में, जहाँ कृषित क्षेत्र का ४ से ९ प्रतिशत इसी खरपतवार से घिरा रहता है, यह अति चराई और मृदा उर्वरता में गिरावट को दर्शाता है। यह प्रतिवेदन किया जा चुका है कि पजांब में मक्का के खेतों का ३० प्रतिशत से भी अधिक क्षेत्र इस खरपतवार द्वारा ग्रस्त है।
खरपतवार प्रबन्धन
कर्षण विधि
सर्वप्रथम हमें इसके बीज की रूकावट या क्षय को देखना चाहिए क्योंकि बीज पूरे वर्षभर अनियमित तरीके से अंकुरित होते रहते है और चूकि पौधे थोडे समय में ही फूल व बीज बना लेते है एक या विरलता से की गई जुताईया इसकी बीज सख्ंया को रोकने या कम करने के लिए पर्याप्त नही है। जैसा कि मूसला जड़ वाला पौधा है, इस मूसला जड को थोडा नीचे से अलग करने के लिये भूमि में उथली जुताई सतह पर करना लगभग अच्छा होता है। क्योकि बीज भूमि में लम्बे समय तक रहते है, गहरी जुताई करना कम फायदेमंद है। यदि फल बन गये है व पौधे को काट दिया जाय तो बीज पक नही सकते।
जैविक
रासायनिक
उगने के बाद ४०० ग्रा॰/है॰ २,४- डी॰ या ४ ग्रा॰/है॰ ऑलमिक्स का प्रयोग प्रभावी नियन्त्रण
प्रदान करता है ।
वनस्पति विज्ञान
स्वभाव
यह लम्बा पडा हुआ से जमीन पर पड़े हुए चटाई जैसी बनाये हुए खरपतवार है। यद्यपि ट्रिबूलस टेरेसट्रिस सामान्यतः जमीन पर लम्बा पडा हुआ पौधा है। यह सघनता से खडी हुई फसल की छाया और प्रतिस्पर्धा में भी ऊपर की तरफ उग सकता है।
जड़ें
एक
मजबूत पार्श्वीय रेशेदार
जड़ों से युक्त मूसला
जड़ें।
तना
करीब
३ मि.मि.
लम्बे
केन्द्रीय चमकीले अक्ष
युक्त व बहुत सख्त
सफेद रोंम,
कभी-कभी
रोम विरलता में।
पत्तियाँ
सम्मुख, सयुंक्त, पिच्छादार, छोटा वृत, ६ सें॰ मी॰ लम्बाई तक लम्बी पत्ती, पत्रक ५ से ८ (कही १४ में) जोडों में, प्रायः जोडो में छोटे या अन्य में असमान, अक्ष सघन रोमिल, पत्रक टेढेपन में दीर्घायत भालाकार १५ मि.मि तक लम्बा, ५ मि.मि. चौडा, ऊपरी सतह हरी, विरलता में रोमिल, निचली सतह सफेद रोमो के साथ सघन रोमिल अनुपत्र रेखीय, करीब १० मि.मि. तक लम्बे।
पुष्पक्रम
पुष्प एकल, अक्षीय, पुष्प वृत्त रोमिल, निचली पत्तियों की तुलना में थोडे छोटे, ३ से ५ मि.मि. लम्बे बाह्ययदल, निमिताग्र, दल ५, अन्तः पुष्पदल पीले, ३ से १२ मि.मि लम्बे, पुकेंसर दलो जैसे लम्बे।
फल
एक सें॰ मी॰ व्यास के अस्फोटी बीज कोष, लगभग त्रिकोणीय, सूखे, लगभग काठठीय भाग (कोकई) तारे की तरह प्रवृत, जोकि पकने पर टूटने वाले, कोकई राोमिल या प्रायः अरोनिल, प्रत्येक एक नलिकाकार कठोर आधरीया सिरे युक्त, मध्य से ऊपर दो दृंढ विभिन्न पार्श्वीय निमिताग्र मूल और आधार के पास दो छोटे मूल, सीधे नीचे की तरफ।
बीज
प्रत्येक भाग से १ से ५, सफेदी युक्त, चपटे, लटवाकार, नुकीले शिखर युक्त।
पौद्
(सीडलिंग)
बीजपत्र
दीर्घापत,
किनारे पर भिक्षर
की तरफ नोंचे हुए,
आधार से ३ तालिकाये
सहित,
वृत्त ५ मि॰
मी॰
लम्बा और पतफलक ७
से १० मि॰
मी॰
लम्बा व ३ मि॰
मी॰
चौड़ा १ प्रथम पत्तियाँ
सयुंक्त और सम्मुख ३
से ४ दृढक्पेमी पत्रकें।
टिप्पणी
संदर्भ
-
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