Cyperus rotundus L. - CYPERACEAE - Monocotyledon

साईप्रस रोटैन्डस

Common name : Nutsedge, nutgrass, purple nutsedge
Common name in Bengali : Mutha, badhail, bedalle, dila motha, nagarmuta
Common name in Hindi : Motha, dila
Common name in Urdu : Mork, deela

Habit - © Juliana PROSPERI - CiradInflorescence - © Juliana PROSPERI - Cirad Spikes - © Juliana PROSPERI - CiradPlants with underground tubers - © Juliana PROSPERI - Cirad Tuber chains - © Juliana PROSPERI - CiradYoung tuber covered with scale leaves - © Juliana PROSPERI - Cirad Stem section - © Juliana PROSPERI - CiradLeaf upper surface with a distinct midrib and waxy cutin - © Juliana PROSPERI - Cirad Botanical line drawing - © -

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पार्यायवाची

सामान्य नाम

नटसेज, नटमास, परपल नटसेज

बंगाली

बधाल, बिडेल, डिला मोथा, मुथा नागरमुता, सादा कुफी

हिन्दी

मोथा, डिला

उर्दू

मोर्क डीला

 

व्याख्या

मोथा एक भारतीय मूल का विश्व में बहुत ही सोचनीय खरपतवार है। यह १०० सें॰ मी॰ तक के छोटे- गुच्छों झुरमुट के रूप में उगता है। इसकी आधारिय पत्तिया गहरे हरे रंग की होती है जोकि पुष्पक्रम की तुलना में छोटी होती है। पुष्पक्रम तना आधार पर धुधंलीय, मोटाईयुक्त तीन पार्श्वीय होता है। यह नमी उर्वर भूमियों में उगता है और प्रकन्द राइजोस कन्दो का बहुत सघन भूमिगत तन्त्र होता है। प्रकन्द फसलो की जड़ों में घुसकर पूरी तरह बाहर निकल सकते है। इसका विभिष्ट लक्षण यही है कि ये भूमिगत बन्द काफी संख्या, में उत्पन्न करते है जो पुनः सुषुदा अवस्था में रहकर सूखा, गर्मी बाद की बहुत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी पौधे उत्पन्न कर सकते है। इसका बैगनी नटसेज प्रचलित नाम इसके लाला से बैंगनी भूरे पुष्पक्रम को दर्शाता है।

 

जीव विज्ञान

मोथा एक बहुवर्षीय पौधा है। यह मुख्यता अपने भूमिगत शाखीय तना तन्तु से संबर्धित होता है। जिसकी लम्बाई कन्द बनाती है। कर्षण क्रियाओं के दौरान यह सर्वधन जुडे हुए प्रकन्दो के टूटने से प्रोत्साहित होता है। प्रकन्दो का यह भूमिगत एक अन्तराल पर कन्दो को उत्पन्न करता है और ये कन्द जो भूमि की सतह के पास होते है वायुकीय तनो को उल्पन्न करते है। कन्दों का बहुत ही सघन  जडतन्त्र होता है जो भूमि में काफी गहराई तक पहुँच सकता है। इसका प्रकीर्णन बीज द्वारा बहुत कम होता है।

 

पारिस्थितिकी एवं वितरण

भारतीय मूल का यह मोथा (परपल नट सेज) विश्व के अनेक देशो के क्षेत्रो स्थानो में अन्य खरपतवारो की तुलना ये अधिक पाया जाता है। यह सभी प्रकार की भूमियों और समुद्र तल से काफी ऊंचाई वाले में पर पाया जाता है। यह नम एवं अच्छे जलनिकास वाली मृदाओं में उगता है तथा यह शुष्क एवं मृदाओ एवं जलवायु में भी उगता है। यह छाया के प्रति अति संवेदनशील है जिससे कन्द उत्पादन तथा पत्ती क्षेत्र सूचकांव एवं शुष्क पदार्थ उत्पादन स्पष्ट रूप से कम हो जाता है। फसल में इसके लिये धूपयुक्त कम छाया वाले स्थान उपयुक्त होते है।

 

कष्टक प्रभाव

मोथा, ९२ देशों ५२ फसलों में खरपतवार के रूप में देखा गया है। यह कृषिगत खेतों, सड़क के किनारों, बेकार छोडे गये क्षेत्रों लकड़ी के किनारो पर पाया जाता है और यह सिंचाई की नालियों, नहर नदियो के किनारो को ढक लेता है। पडलिंग वाले धान में इसकी समस्या गभीर हो सकती है। कम जल आपूर्ति वाले समय में, जब धान की रोपाई ठीक से नही हो सकती या धान रोपाई हो जाने के बाद जल आपूर्ति बंद हो जाये तब ये नटसेज सूखी मिट्टी में पैदा होकर मुख्य फसल को रोक देते है। इसके कन्द मिट्टी में मनुष्य या पशुओं के पैंरो द्वारा और मशीनों के आने-जाने से इधर उधर चलते रहते है। ये तूफान के बाद, पानी के तेज बहाव के साथ नये क्षेत्रों में पहुँचते है और सतही सिंचाई द्वारा इनका वितरण हो जाता है।

 

खरपतवार प्रबन्धन

कर्षण

छाया के प्रति संवेदनशील होने के कारण इसे, पंक्ति से पंक्ति की दूरी कम करके और फसल के पौधो का धनत्व बढाकर ताकि भूमि की सतह पर छाया शीघ्र हो सके, नियंत्रित किया जा सकता है। भारत में परम्परागत धान उगाने वाले क्षेत्रों में मोथा का नियन्त्रण शूकरो का प्रयोग करके किया जा सकता है। प्रायः शूकर वानस्पतिक अवशेषो से पेट भरते है और व्यर्थ भूमि में कन्दो को चारे के रूप में होने दिया जाता है। चूकि कन्द रसदार और मीठे होते है शूकरो के लिये प्रिय है। यहाँ तक कि मिट्टी कठोर होने के बाद भी ये कन्दो को आसानी से हटा लेते है। सामान्यतः खेत पानी से पूरी तरह भिगो दिया जाता है और ठीक से पडल कर दिया जाता है तथा शूकरो को इससे छोड़ दिया जाता है। एक पशु एक दिन में - कि॰ग्र. द्वन्द इकट्टठा कर सकता है और ६०-७५ पशु एक दिन में एक हैक्टेयर से कन्दो को समाप्त कर सकते है।

जैविक नियन्त्रण

मोथा के प्रभावी नियन्त्रण के लिए टोरट्रीसिड (बैक्ट्रा वैरूताना) को जैविक नियन्त्रक कारक की तरह माना गया है। इसके पतगो को जैविक नियन्त्रक कारक की तरह माना गया है। इसके पतंगो के निकलने की अवस्था लापरवाही वाली होती है। नियन्त्रण का स्तर इनकी आयु और पौधे की दशा पर निर्भर करती है। इसके उत्पीडन की दर, जब पौधे १०-२१ दिन पुराने और ओजस्वी तरह से पैदा होने के समय सर्वाधिक थी।

रासायनिक  नियन्त्रण

मोथा का उन्मूलन कठिन है लेकिन खरपतवार नाशी का कर्षण विधि (निराई गुडाई) के साथ एकीकृत प्रयोग करने से बहुत प्रभावी नियन्त्रण होता है। इसके कन्दों की संख्या ,-डी॰ व बार-बार जुताई करने से कम हो सकती है। ३० दिन के अन्तराल पर बार , डी॰ के प्रयोग से बाद में कर्षण क्रिया से कन्दों की संख्या ८६ प्रतिशत तक घट जाती है। यह केवल खाली खेत में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। धान की सीधी बीजी गई फसल और ज़ीरो टिलेज गेहूँ में बुलाई से पहले १% ग्लाइफोसेट और बाद में ५०० ग्र. प्रति हैक्टेयर २,-डी॰ के प्रयोग से लगभग पूर्ण नियन्त्रण पाया जा सकता है।

 

वनस्पति विज्ञान

स्वभाव

         बैंगनी नटसेज सीधे होते हैं। बहुवर्षीय शाक १०० सें॰ मी॰ ऊचाई तक छोटे समूहो में उगते हैं। पत्तिंया सीधी तीन दिशाओं में व्यवस्थित होती है।

जड़ें

जड़ें रेशेदार, सघन शाखीय, मुडे रोमो से ढका हुआ। पौधे, कन्दो के सघन, समानान्तर पतले तन्त्र जो कि सफेद मांसल व्यस्क पत्तियो के शल्को से ढके हुए, से फैल जाते है। कभी-कभी भूरे रेशेदार या पुराने होने पर तारनुमा प्रकन्द से २५ सें॰ मी॰ भूमिगत कन्दो के अन्तराल से उत्पन्न होते है जो कि प्रचुरता में जारी रहते है। मृदा में कंन्दो कें बनने की यह श्रखंला प्रचुर गहराई तक चलती रहती है। कन्द - सें॰ मी॰ लम्बे और सें॰ मी॰ चौडे, सफेद रसादार जब व्यस्कीय है तो घुमावयुक्त रेशेदार भूरे या लगभग आयु के साथ काले, पीसने पर बहुत तीखी महक युक्त पत्ती के कागजनुमा शल्क से ढके हुए, इन शल्को पर अक्षीय कलिकाये होती है जो नये पौधे बनाती है।

तना

तना सीधा, आडे-तिरछे भाग में त्रिकोणीय, चिकना २० से १०० सें॰ मी॰ ऊचाई युक्त, साधारणतयाः आधारीय पत्तियो की तुलना में लम्बा। ये तने पुष्पीय अक्षो के सदृश/समान होते है। पौधे का आधार फूला हुआ, आधार से कन्दीय, मोटाईयुक्त में बना होता है।

पत्तियाँ

रेखीय, निभिताग्र, तीन तरफ को व्यस्थित, १० से ५० सें॰ मी॰ लम्बी, से मि॰ मी॰ चौड़ी, तीन पक्तियों युक्त आधारीय गुच्छो की बहुत सघन गॉठो से उत्पन्न, केन्द्र से होकर उत्पन्न जिसका ऊपर की तरफ उपजाऊ तना होता है। फलक अरोमिल, चमकीले, गहरे हरे, तट-युक्त दो बार मुडे हुए भाग मध्य सिरा खुरदरी।

पुष्पक्रम

पुष्पगुच्छ ढीला, साधारण या हल्का जटिल, से २५ सें॰ मी॰ लम्बे सहपत्रो जैसे या पत्तियो द्वारा कक्षात्त्रित, प्रायः पुठपीय जैसी किरणों के समान। पुष्प रेखीय ओर स्पाइकिका समतल छत्र रश्नि के अन्त पर समूहो में स्पाइकिकाये . से सें॰ मी॰ लम्बी और मि॰ मी॰ चौड़ी, १० से ४० फूल एकान्तर पर्याप्त दूरी पर, लाल, लाल-भूरे या बैंगनी भूरे, तूड काफी पास-पास, से प्रमुख नोकें, एक छोटी नोंक के साथ। लालिमा से गहरे भूरे या बैंगनी जैसे भूरे, बाहृयदलपुुुंज दलपुंज अनुपस्थित पुकेंसर तीन, वर्तिका तीन शाखायुक्त।

फल

ऐकीन (नट) लटवाकार या दीर्घायत्त-लटवाकार, . मि॰ मी॰ लम्बे, . मि॰ मी॰ चौडे, तीन कोणीय, वार्तिकाग्र से ढके हुए, जैतूनीये से भूरे या काले रंग के।

 

टिप्पणी


संदर्भ

-    बैरागेओइस, टी. ले, . जीयूफ्रोल्ट, पी. ग्राई . करारा-२०००, एडवन एन वी. . लेस प्रिंसिपलस मायूवैसेस हर्बस डे ला रीयूनियन (सी.डी-रोम) सिराद, एस.पी.वी. फ्रांस।

-    होल्म, एल.जी., डी.एल प्लकेनट, जे.वी. पानचो, जे.पी. हरबरगर १९९१. दा वर्ल्ड वार्सट वीडस डिस्ट्रीब्यूश न और बायालौजी ईस्ट वैस्ट सैन्टर बाई दा यूनिवर्सिटी प्रेस हवाई।

-    गौलिनाये, एम., के मूडी, सी. एम पिगिन-१९९९, अपलैंड राइस वीडस आफ साउथ एंड साउथ-इस्ट एशिया आई.आर.आर.आई. फिलिपाइन्स।

-    रदनाचेलेस, टी., जे. एफ मैक्सवैल.१९९४, वीडस आफ सोयबीन फील्डस थाइलैड मल्टीपल क्रोपिंग सैन्टर पब्लिकेशन्स थाईलैंड।


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